श्रीहरि बिना नहीं कहीं शांति, सत्य कहता हूँ बिन विभ्रांति ૧/૧

श्रीहरि बिना नहीं कहीं शांति, सत्य कहता हूँ बिन विभ्रांति;
	श्रीहरि स्मरण आत्मा की क्रांति, इसके अलावा सभी अशांति-टेक.
आत्मा के लिये देह और दुनिया, हरिस्मरण बिन केवल दु:ख है;
हरि का आश्रय मूर्ति में प्रीति, आज्ञा-उपासना केवल सुख है;
	पंचविषय के सुख जहर हैं, देते हैं केवल दु:ख अशांति...१
मेरा अनुभव मैं लिख रहा हूँ, सब शास्त्रों में भी यही लिखा है;
दुनिया के सभी जीव प्राणी में, नजर डाली तो यही देखा है;
	कर लो केवल प्रभु का सुमिरन, चाहिये आपको जो सुख-शांति...२
आत्मा के लिये श्रीहरि सिवा, दु:खद हैं सब माया के आकार;
ज्ञान अनुभव कहते हैं निज का, सच जानीके करो न प्यार;
	श्रीहरिजी की आकृति सत्य है, आत्मा की वही शाश्वत शांति...३ 
 

મૂળ પદ

श्रीहरि बिना नहीं कहीं शांति

મળતા રાગ

રાજી થયાનું પોતે કરાવી

રચયિતા

જ્ઞાનજીવનદાસજી સ્વામી-કુંડળ

ફોટો

કિર્તન ઓડિયો / વિડિયો યાદી

ગાયક રાગ પ્રકાશક    
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