हे स्वामिनारायण सर्वोपरि, सब धाम के धामी तुम ही हो ૧/૧

हे स्वामिनारायण सर्वोपरि, सब धाम के धामी तुम ही हो,
		मुझे आप में साथ ही रहेना है,
		मेरे भीतर बाहर तुम ही हो...हे स्वा० टेक.
चिदचिद्‌ सब यह माया तुम्हारी, (२)
इसमें से कुछ भी, मुझे नहीं देना, (२)
		मेरी आत्मा ही हरि तुम ले लो,
		मेरा सब कुछ सुखधाम तुम ही हो...मुझे० १
आपकी द्रुष्टि से देखुं मैं जब ही, (२)
हरिवर तुम बिन, है नहीं कोई, (२)
		तुम ज्ञानजीवन के जीवन हो,
		मेरा अस्तित्व प्रियतम तुम ही हो...मुझे० २
 

મૂળ પદ

हे स्वामिनारायण सर्वोपरि, सब धाम के धामी तुम ही हो

રચયિતા

જ્ઞાનજીવનદાસજી સ્વામી-કુંડળ

ઉત્પત્તિ

ता.२३/०६/२०१४, वडोदरा, वांचनरूम

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ગાયક રાગ પ્રકાશક    
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