श्रीहरिकृष्ण महाराज, ब्रह्मधाम में जैसे हो ૧/૧

श्रीहरिकृष्ण महाराज, ब्रह्मधाम में जैसे हो,
यह धाम वडताल में, तुम प्रगट बैठे हो;
	हसते तो हो, कुछ तो कहो, क्या मुज से रुठे हो;
	सुखकर दु:खहर आपही, मेरी धडकन सांसे हो...श्री हरि० टेक.
जैसे गगन में है पृथ्वी, है पृथ्वी,
मैं रही हुं पिया, ऐसे ही तुज में डूबी;
	तुम सबसे हो नजदीक, नजदीक,
	तुम फिर भी रहो, दूर तुम्हारी ये खूबी;
	दूर रहो, पास रहो, लेकीन खुश रहो...सुख० १
तेरामेरा जिया है एक, है एक,
मैं फिर भी तुजे, छोड न शकुं पल एक;
	तुं है मुज में मैं हूं तुज में, हां तुज में,
	हां फिर भी मुजे, चेन नहीं है मन में;
	राजा मेरा, मैं रानी तेरी, और क्या चाहते हो...सुख० २
तुम स्वामी मेरा मैं तेरी, हूं तेरी,
तुम कुछ न कहो तो, पीड होती हे घनेरी;
	तेरी मेरी प्रीत अनेरी, है अनेरी,
	कहे ज्ञानसखी मैं, केवल हूं पिया तेरी;
	दासी रहूं, मैं सेवा करूं, तुम जो चाहते हो...सुख० ३
 

મૂળ પદ

श्रीहरिकृष्ण महाराज, ब्रह्मधाम में जैसे हो

મળતા રાગ

हे सर्वोपरी सुखधाम

રચયિતા

જ્ઞાનજીવનદાસજી સ્વામી-કુંડળ

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ગાયક રાગ પ્રકાશક    
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